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यस्ते॑ य॒ज्ञेन॑ स॒मिधा॒ य उ॒क्थैर॒र्केभिः॑ सूनो सहसो॒ ददा॑शत्। स मर्त्ये॑ष्वमृत॒ प्रचे॑ता रा॒या द्यु॒म्नेन॒ श्रव॑सा॒ वि भा॑ति ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yas te yajñena samidhā ya ukthair arkebhiḥ sūno sahaso dadāśat | sa martyeṣv amṛta pracetā rāyā dyumnena śravasā vi bhāti ||

पद पाठ

यः। ते॒। य॒ज्ञेन॑। स॒म्ऽइधा॑। यः। उ॒क्थैः। अ॒र्केभिः॑। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। ददा॑शत्। सः। मर्त्ये॑षु। अ॒मृ॒त॒। प्रऽचे॑ता। रा॒या। द्यु॒म्नेन॑। श्रव॑सा। वि। भा॒ति॒ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:5» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:7» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसः) बलवान् के (सूनो) पुत्र और (अमृत) मरणधर्म्म से रहित ! (यः) जो (यज्ञेन) विद्वानों के सत्कारनामक यज्ञ और (समिधा) सत्य के प्रकाशक वा ईंधन से तथा (यः) जो (अर्केभिः) आदर करने योग्य और (उक्थैः) कहने के योग्य पदार्थों से (ते) आपके लिये (ददाशत्) देता है (सः) वह (मर्त्येषु) मनुष्यों में (प्रचेताः) उत्तम ज्ञानवान् (राया) धन (द्युम्नेन) यश और (श्रवसा) अन्न वा श्रवण से (वि, भाति) प्रकाशित होता है, इस प्रकार विशेष करके जानो ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो प्रशंसित कर्म्म और गुणों के सहित जन इस संसार में प्रयत्न करते हैं, वे विद्या, यश और धन से युक्त होकर संसार में प्रसिद्ध होते हैं ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सहसः सूनोऽमृत ! यो यज्ञेन समिधा योऽर्केभिरुक्थैस्ते ददाशत् स मर्त्येषु प्रचेता राया द्युम्नेन श्रवसा वि भातीति विजानीहि ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (ते) तुभ्यम् (यज्ञेन) विद्वत्सत्काराख्येन (समिधा) सत्यप्रकाशकेनेन्धनेन वा (यः) (उक्थैः) वक्तुमर्हैः (अर्केभिः) अर्चनीयैः (सूनो) अपत्य (सहसः) बलवतः (ददशत्) ददाति (सः) (मर्त्येषु) मनुष्येषु (अमृत) मरणधर्मरहित (प्रचेताः) प्रकृष्टं चेतो विज्ञानं यस्य (राया) धनेन (द्युम्नेन) यशसा (श्रवसा) अन्नेन श्रवणेन वा (वि) (भाति) ॥५॥
भावार्थभाषाः - ये प्रशस्तैः कर्म्मभिर्गुणैः सहिता अत्र प्रयतन्ते ते विद्यायशोधनयुक्ता भूत्वा जगति प्रख्यायन्ते ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे प्रशंसनीय गुण-कर्मयुक्त लोक जगात प्रयत्न करतात ते विद्या, यश व धन प्राप्त करून प्रसिद्ध होतात. ॥ ५ ॥